प्रसाद जी की सूक्तियों में नियतिवादी दर्शन
जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के अजर-अमर साहित्यकार हैं। प्रसाद जी दार्शनिक महाकवि थे, सांस्कृतिक चेतना सम्पन्न ऐतिहासिक नाटककार थे एंव जीवन की भाव सम्पदा को अभिव्यक्त करने वाले अनूठे कथाकार थे। प्रसाद जी के चिन्तन पर दर्शन के विविध आयामों का प्रभाव है। उनकी चिन्तना को सर्वाधिक प्रभावित करने का श्रेय नियतिवादी दर्षन को है। उनके काव्य, नाटक, कहानी, उपन्यास समग्र साहित्य पर नियतिवाद छाया हुआ है इसी साहित्य सागर में नियतिवादी सूक्तियों के अनेक मोती मिलते हैंै। चाहे ‘कामायनी‘ के ‘मनु‘ हों, या ‘अजातशत्रु‘ का ‘जीवक‘ हो या ‘स्कन्दगुप्त‘ की ‘देवसेना‘ या फिर ‘आकाशदीप‘ की ‘चम्पा‘ सभी पात्रों के संवादों में नियति सम्बन्धी सूक्तियाॅ अनुस्यूत हैं। नियतिवाद से जुड़ा इतना गहन और गम्भीर चिन्तन तथा उस चिन्तन मन्थन से उपजा सूक्ति सुभाषित नवनीत हिन्दी के किसी भी अन्य कवि अथवा साहित्यकार की रचनाओं में नहीं मिलता जैसा प्रसाद साहित्य में उपलब्ध है। प्रसाद जी को हिन्दी का प्रथम प्रौढ़ नियतिवादी साहित्यकार भी माना जा सकता है लेकिन प्रसाद के नियतिवाद का अर्थ भाग्यवाद कहीं से भी नहीं है। उनका नियतिवादी दर्शन कर्म दर्शन से परस्पर जुड़ा हुआ है और कर्म की प्रेरणा देता है।