scholarly journals Manthanam main Nari Vimarsh /मन्थनम् में नारी विमर्श

HARIDRA ◽  
2021 ◽  
Vol 2 (07) ◽  
pp. 14-19
Author(s):  
सारिका वार्ष्णेय

मन्थनम्1 नामक इस कृति में परमानन्द शास्त्री ने स्त्री विमर्श की दृष्टि से महाकवि कालिदासकृत अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक की उस घटना को अपने काव्य का विषय बनाया है जो शकुन्तला के जन्म परिचय की मात्र जानकारी देती है। शकुन्तला मेनका अप्सरा एवं ऋषि विश्वामित्र की औरस पुत्री है। किन्तु यहाँ कवि ने उस अनछुए विषय पर मन्थन किया है कि देवराज इन्द्र के द्वारा स्वर्ग की अप्सरा मेनका को ऋषि विश्वामित्र की तपस्या को भंग करने के उद्देश्य से पृथ्वी पर भेजा गया। विवश होकर मेनका ने वैसा ही किया, ऋषि संग से एक पुत्री को उत्पन्न किया किन्तु विवशता के कारण उस पुत्री का त्याग करना पड़ा। आद्योपरान्त उस नियोग प्रक्रिया में मेनका के मन की प्रतिक्रिया एवं गान्धर्व विवाह के उपरान्त परित्यक्ता शकुन्तला की मनोस्थिति को डॉ॰ परमानन्द शास्त्री ने काव्य का रूप प्रदान किया, जिसमें नारी मनोविज्ञान, नारी के आत्म संघर्ष, उसकी परवशता और उसकी वेदना की अनुभूति को प्रस्तुत किया गया है।

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